मियाँ नसीरुद्दीन
- कृष्णा सोबती | कक्षा 11 हिंदी आरोह
पाठ का सारांश
'मियाँ नसीरुद्दीन' एक शब्दचित्र है, जिसे कृष्णा सोबती ने 'हम-हशमत' संग्रह से लिया है। इसमें लेखिका ने खानदानी नानबाई (रोटी बनाने वाले) मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, उनकी रुचियों और उनके स्वभाव का बहुत ही दिलचस्प वर्णन किया है।
लेखिका एक दोपहर जामा मस्जिद के पास मटिया महल इलाके से गुज़र रही थीं, जहाँ उन्होंने एक अंधेरी दुकान पर आटा गूँथते देखा। पूछने पर पता चला कि यह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान है, जो छप्पन (56) प्रकार की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं।
लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन से बात की, जो सत्तर वर्ष के थे और चारपाई पर बैठे बीड़ी पी रहे थे। मियाँ ने बड़े ही शाही और बेपरवाह अंदाज़ में लेखिका के सवालों के जवाब दिए। उन्होंने बताया कि यह उनका खानदानी पेशा है और वे इसे एक 'कला' मानते हैं। उन्होंने अपने वालिद (पिता) मियाँ बरकतशाही और दादा मियाँ कल्लन को भी याद किया।
जब लेखिका ने उनके खानदान के किसी सदस्य के बादशाह के बावरचीखाने में काम करने के बारे में पूछा, तो वे गर्व से भर उठे। हालाँकि, जब लेखिका ने बादशाह का नाम पूछा, तो वे झल्ला गए और बात को टाल दिया, जिससे लगा कि शायद यह एक सुनी-सुनाई बात हो।
मियाँ नसीरुद्दीन ने बताया कि सच्ची तालीम (शिक्षा) मेहनत और अभ्यास से आती है, न कि सिर्फ किताबी ज्ञान से। उन्होंने अपने शागिर्दों (शिष्यों) का भी ज़िक्र किया। यह पाठ एक ऐसे कारीगर का चित्र प्रस्तुत करता है, जो अपने पेशे को कला का दर्ज़ा देता है और उस पर गर्व करता है।
एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-उत्तर
पाठ के साथ (पृष्ठ 28-29)
प्रश्न 1: मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है?
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा निम्नलिखित कारणों से कहा गया है:
1. असाधारण नानबाई:
- वे कोई साधारण रोटी बनाने वाले नहीं थे, बल्कि एक खानदानी नानबाई थे।
- वे स्वयं को नानबाइयों में सर्वश्रेष्ठ मानते थे।
2. छप्पन प्रकार की रोटियाँ:
- वे छप्पन (56) प्रकार की रोटियाँ बनाने की कला में माहिर थे, जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी।
3. पेशे को कला मानना:
- वे अपने काम को केवल पेट पालने का साधन नहीं, बल्कि एक ऊँची 'कला' मानते थे और इस पर उन्हें गर्व था।
4. शाही अंदाज़:
- उनका बात करने का अंदाज़, आत्मविश्वास और अपने पेशे के प्रति समर्पण किसी मसीहा (किसी क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति) जैसा ही था।
प्रश्न 2: लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थीं?
उत्तर-
लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास एक पत्रकार की हैसियत से गई थीं।
1. कला के बारे में जानना:
- उन्होंने मियाँ नसीरुद्दीन की छप्पन प्रकार की रोटियाँ बनाने की प्रसिद्धि के बारे में सुन रखा था।
- वे इस अनूठी कला के बारे में जानना चाहती थीं।
2. लोगों तक पहुँचाना:
- वे मियाँ नसीरुद्दीन जैसे कारीगर और उनकी कला के बारे में जानकारी प्राप्त करके उसे प्रकाशित करना चाहती थीं, ताकि अन्य लोग भी इस खानदानी हुनर के बारे में जान सकें।
प्रश्न 3: बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी?
उत्तर-
बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी खत्म होने लगी, क्योंकि:
1. सच्चाई का अभाव:
- ऐसा प्रतीत होता है कि उनके पूर्वजों के किसी बादशाह के बावरचीखाने में काम करने की बात शायद केवल एक सुनी-सुनाई शेखी (डींग) थी।
- उनके पास इसका कोई ठोस प्रमाण या तथ्य नहीं था।
2. झल्लाहट और बचाव:
- जब लेखिका ने बादशाह का नाम पूछकर तथ्यों को कुरेदने की कोशिश की, तो वे झल्ला उठे।
- उन्हें लगा कि उनकी पोल खुल सकती है, इसलिए वे उस बात से बचने लगे और विषय को टाल दिया।
प्रश्न 4: "मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अँधड़ के आसार देख यह मज़मून न छेड़ने का फैसला किया"- इस कथन के पहले और बाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
1. कथन से पहले का प्रसंग:
- लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन से पूछा कि क्या उनके बुजुर्गों ने बादशाह सलामत के यहाँ काम किया था। इस पर मियाँ ने गर्व से कहा कि किया था।
- लेखिका ने तुरंत पूछा, "किस बादशाह के?"
- यह सवाल सुनते ही मियाँ की आवाज़ में रुखापन आ गया। उन्होंने कहा, "अजी साहिब, क्यों बाल की खाल निकालने पर तुले हैं।" वे स्पष्ट रूप से बादशाह का नाम नहीं बता पा रहे थे और झल्ला रहे थे।
2. कथन के बाद का प्रसंग:
- लेखिका ने जब मियाँ की झल्लाहट ('दबे हुए अँधड़ के आसार') को भाँप लिया, तो उन्होंने समझदारी दिखाते हुए उस विषय (मज़मून) को छोड़ दिया।
- उन्होंने तुरंत बात बदलते हुए पूछा, "आपको इन दोनों (पिता और दादा) में से किसी की भी कोई नसीहत याद हो?"
- इस प्रकार, लेखिका ने माहौल को हल्का किया और बातचीत को जारी रखा।
स्पष्टीकरण:
इसका अर्थ है कि बादशाह का नाम न बता पाने के कारण मियाँ नसीरुद्दीन के मन में जो गुस्सा और शर्मिंदगी उमड़ रही थी (दबा हुआ अँधड़), उसे लेखिका ने पहचान लिया और उस विषय को छेड़ना बंद कर दिया।
प्रश्न 5: पाठ में मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र लेखिका ने कैसे खींचा है?
उत्तर-
लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र बहुत ही सजीव और रोचक ढंग से खींचा है:
1. वेश-भूषा और आयु:
- लेखिका बताती हैं कि मियाँ लगभग सत्तर वर्ष के हैं। वे चारपाई पर बैठे बीड़ी पी रहे हैं।
2. चेहरा-मोहरा:
- उनका चेहरा मौसम की मार से पका हुआ (अनुभवी) है।
- आँखों में काइयाँपन (चालाकी) और भोलापन है।
- पेशानी (माथे) पर एक मंजे हुए कारीगर के तेवर हैं।
3. स्वभाव:
- उनका बात करने का अंदाज़ शाही और बेपरवाह है।
- वे अपने काम में माहिर और आत्मविश्वासी हैं।
- वे बहुत बातूनी हैं और अपनी तारीफ़ पसंद करते हैं।
- उनमें थोड़ी अकड़ और चालाकी भी है।
पाठ के आस-पास (पृष्ठ 29)
प्रश्न 1: मियाँ नसीरुद्दीन की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं?
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन की निम्नलिखित बातें मुझे अच्छी लगीं:
1. काम के प्रति समर्पण:
- वे अपने नानबाई के पेशे को एक साधारण काम नहीं, बल्कि 'कला' मानते थे और उस पर गर्व करते थे।
2. मेहनत को महत्व देना:
- उनका मानना था कि असली तालीम (शिक्षा) किताबी नहीं, बल्कि काम करने और अभ्यास (practice) से आती है।
3. आत्मविश्वास:
- वे अपने हुनर में माहिर थे और छप्पन प्रकार की रोटियाँ बनाने की बात पूरे आत्मविश्वास से कहते थे।
4. ज़िंदादिली:
- सत्तर वर्ष की उम्र में भी वे बहुत बातूनी, ज़िंदादिल और अपने काम के प्रति उत्साही थे।
प्रश्न 2: तालीम की तालीम ही बड़ी चीज़ होती है - यहाँ लेखक ने तालीम शब्द का दो बार प्रयोग क्यों किया है?
उत्तर-
यहाँ 'तालीम' शब्द का दो बार प्रयोग गहरे अर्थ में किया गया है।
1. पहली 'तालीम' (तालीम की...):
- इसका अर्थ है 'शिक्षा' या 'ज्ञान' (Education or Knowledge)।
2. दूसरी 'तालीम' (...तालीम ही):
- इसका अर्थ है 'उस शिक्षा का पालन' या 'अभ्यास' (Implementation or Practice)।
पूरा अर्थ:
- मियाँ नसीरुद्दीन कहना चाहते हैं कि सिर्फ़ शिक्षा या ज्ञान प्राप्त कर लेना ही बड़ी बात नहीं है, बल्कि उस शिक्षा का सही ढंग से पालन करना, उसे व्यवहार में लाना और उसका निरंतर अभ्यास करना ज़्यादा बड़ी बात है। असली हुनर मेहनत और अभ्यास से ही आता है।
प्रश्न 3: मियाँ नसीरुद्दीन तीसरी पीढ़ी के हैं, जिसने अपने खानदानी व्यवसाय को अपनाया। वर्तमान समय में प्रायः लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर-
वर्तमान समय में लोगों द्वारा पारंपरिक व्यवसाय न अपनाने के कई कारण हैं:
1. शिक्षा का प्रसार:
- नई पीढ़ी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है, जिससे उनके सामने डॉक्टर, इंजीनियर, मैनेजर, आईटी प्रोफेशनल जैसे नए व्यवसायों के विकल्प खुल गए हैं।
2. आर्थिक कारण:
- कई पारंपरिक व्यवसायों (जैसे मिट्टी के बर्तन बनाना, हाथ से बुनाई) में मेहनत अधिक और आय कम होती है। लोग अधिक पैसा कमाने के लिए दूसरे क्षेत्रों में जा रहे हैं।
3. सामाजिक प्रतिष्ठा:
- समाज में कुछ पारंपरिक कामों को (जैसे नानबाई, मोची, बढ़ई) 'छोटा काम' माना जाता है। लोग सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण भी इन कामों को नहीं अपनाना चाहते।
4. आधुनिकता और मशीनीकरण:
- मशीनों के आने से कई पारंपरिक काम पुराने पड़ गए हैं और उनका बाज़ार खत्म हो गया है, जिससे लोगों को मज़बूरी में नए काम धूँढने पड़ रहे हैं।
प्रश्न 4: "मियाँ, कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो? यह तो खुरafat वालों की खुराफात है" - अखबारों के बारे में मियाँ नसीरुद्दीन की इस टिप्पणी पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन का अखबारों के बारे में ऐसा सोचना उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है।
1. काम को महत्व देना:
- मियाँ नसीरुद्दीन 'मेहनत' और 'हुनर' को असली मानते हैं। उनकी नज़र में अखबार छापना या पढ़ना केवल 'खुराफात' (शरारत या बेकार का काम) है।
- वे मानते हैं कि अखबार वाले सिर्फ बातें बनाते हैं, जबकि वे असली हुनर (रोटी पकाना) जानते हैं।
2. काम में बाधा:
- उन्हें लगता है कि पत्रकार (अखबारनवीस) लोगों के काम में दखल देते हैं, बेकार के सवाल पूछकर उन्हें परेशान करते हैं।
- वे लेखिका के सवालों से परेशान होकर ही यह टिप्पणी करते हैं।
3. अपनी दुनिया में सीमित:
- यह भी पता चलता है कि मियाँ नसीरुद्दीन अपनी कला और दुकान की दुनिया तक ही सीमित हैं। उन्हें बाहर की दुनिया, राजनीति या खबरों में कोई दिलचस्पी नहीं है।
मेरा विचार:
- मियाँ का यह विचार एकतरफा है। वे अखबारों के महत्व (जागरूकता फैलाना, जानकारी देना) को नहीं समझते। वे पत्रकारिता को अपने 'हुनर' से बहुत छोटा आँकते हैं, जो कि उनका अपना व्यक्तिगत अनुभव है।
भाषा की बात (पृष्ठ 29-30)
प्रश्न 1: 'पंचहज़ारी अंदाज़' का क्या अर्थ है?
उत्तर-
'पंचहज़ारी अंदाज़' का अर्थ है - किसी बड़े शाही मनसबदार (अधिकारी) जैसा रोबदार या शाही अंदाज़।
- मुग़ल काल में 'पंचहज़ारी' (पाँच हज़ार सैनिकों का) एक बड़ा पद या 'मनसब' होता था।
- लेखिका ने इस शब्द का प्रयोग मियाँ नसीरुद्दीन के शाही और बेपरवाह अंदाज़ में सिर हिलाने के लिए किया है।
प्रश्न 2: 'ता' प्रत्यय जोड़कर दो शब्द बनाइए।
उत्तर-
'ता' प्रत्यय (suffix) जोड़ने से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं:
- इंसान + ता = इंसानियत
- मेहरबान + ता = मेहरबानी
(अन्य उदाहरण: काबिलियत, शख्सियत)
प्रश्न 3: 'खुश' उपसर्ग जोड़कर तीन शब्द बनाइए।
उत्तर-
'खुश' एक फ़ारसी उपसर्ग (prefix) है, जिसका अर्थ 'अच्छा' होता है:
- खुश + नवीस = खुशनवीस (सुंदर लिखने वाला)
- खुश + बू = खुशबू (अच्छी गंध)
- खुश + मिज़ाज = खुशमिज़ाज (अच्छे स्वभाव वाला)
प्रश्न 4: इस पाठ में आए उर्दू-फ़ारसी के 10 शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर-
पाठ में आए उर्दू-फ़ारसी के 10 शब्द:
- नानबाई
- मसीहा
- खानदानी
- अखबारनवीस
- तालीम
- शागिर्द
- वालिद
- खुराफात
- इल्म
- पेशानी
महत्वपूर्ण शब्दावली
- नानबाई: विभिन्न प्रकार की रोटियाँ बनाने और बेचने वाला
- शब्दचित्र: शब्दों के माध्यम से किसी व्यक्ति या दृश्य का सजीव वर्णन
- मसीहा: किसी क्षेत्र का सर्वश्रेष्ठ या उद्धार करने वाला व्यक्ति
- खानदानी: पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा
- पेशानी: माथा
- मज़मून: विषय, प्रसंग
- तालीम: शिक्षा, ज्ञान
- शागिर्द: शिष्य, चेला
- वालिद: पिता
- काइयाँ: चालाक, धूर्त
- अँधड़: तेज़ तूफ़ान
- बाल की खाल निकालना: बहुत गहराई से पूछताछ करना
समझने के लिए टिप्स:
- इस पाठ को एक व्यक्ति के सजीव 'इंटरव्यू' की तरह पढ़ें।
- मियाँ नसीरुद्दीन के बात करने के अंदाज़ (बेपरवाही, अकड़, गर्व) पर ध्यान दें।
- यह समझने की कोशिश करें कि मियाँ अपने काम को 'कला' क्यों मानते हैं।
- 'तालीम की तालीम' वाले हिस्से के गहरे अर्थ को समझें (ज्ञान बनाम अभ्यास)।
- सोचें कि लेखिका ने बादशाह का नाम पूछकर मियाँ को क्यों असहज कर दिया।