अपू के साथ ढाई साल
- सत्यजित राय | कक्षा 11 हिंदी आरोह
पाठ का सारांश
'अपू के साथ ढाई साल' लेखक सत्यजित राय द्वारा लिखित एक संस्मरण है, जिसमें वे अपनी पहली फ़ीचर फ़िल्म 'पथेर पांचाली' के निर्माण के अनुभवों का वर्णन करते हैं। यह पाठ फ़िल्म निर्माण के दौरान आई आर्थिक कठिनाइयों, तकनीकी चुनौतियों और उन अद्भुत क्षणों को उजागर करता है, जिन्होंने इस फ़िल्म को एक कालजयी रचना बना दिया।
लेखक बताते हैं कि वे एक विज्ञापन कंपनी में काम करते थे और पैसों की कमी के कारण फ़िल्म की शूटिंग ढाई साल तक चली। वे सिर्फ़ सप्ताहांत (weekend) पर ही शूटिंग कर पाते थे। इस लंबी अवधि के कारण कई समस्याएँ आईं, जैसे 'अपू' और 'दुर्गा' की भूमिका निभाने वाले बाल कलाकारों की उम्र का बढ़ना, या 'इन्दिरा ठाकुराइन' की भूमिका निभाने वाली 80 वर्षीय चुन्नीबाला देवी के स्वास्थ्य की चिंता।
पाठ में कई रोचक घटनाओं का ज़िक्र है, जैसे- काशफूलों से भरे मैदान का सीन आधा शूट होने के बाद जानवरों द्वारा बाकी फूल खा जाना, जिससे अगले साल तक इंतज़ार करना पड़ा। 'भूलों' नाम के कुत्ते की मृत्यु हो जाने पर हूबहू वैसा ही दूसरा कुत्ता ढूँढना। मिठाईवाले 'श्रीनिवास' का किरदार निभाने वाले कलाकार की मृत्यु हो जाने पर मिलते-जुलते शरीर वाले दूसरे व्यक्ति से पीठ दिखाकर सीन पूरा करवाना। इसके अलावा, बारिश का सीन शूट करने के लिए शरद ऋतु में भी बरसात का इंतज़ार करना और साउंड-रिकॉर्डिंग के दौरान स्थानीय लोगों और जानवरों की आवाज़ों से आई बाधाओं का भी वर्णन है। यह पाठ दिखाता है कि कलात्मकता और धैर्य से किस प्रकार सीमित संसाधनों में भी एक महान कृति की रचना की जा सकती है।
एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-उत्तर
पाठ के साथ (पृष्ठ 24)
प्रश्न 1: पथेर पांचाली फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक क्यों चला?
उत्तर-
पथेर पांचाली फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक चलने के निम्नलिखित कारण थे:
1.सत्यजित राय उस समय एक विज्ञापन कंपनी में नौकरी करते थे। उन्हें नौकरी के काम से जब फ़ुर्सत मिलती थी, तभी वे शूटिंग करते थे।
2.उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। पैसे ख़त्म हो जाने के बाद, उन्हें फिर से पैसे इकट्ठा (जमा) होने तक शूटिंग स्थगित रखनी पड़ती थी।
प्रश्न 2: अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता? उसमें से 'कंटिन्युइटी' नदारद हो जाती — इस कथन के पीछे क्या भाव है?
उत्तर-
इस कथन के पीछे यह भाव है कि फ़िल्म की कला में तारतम्यता या निरंतरता (कंटिन्युइटी) बनाए रखना अत्यंत आवश्यक होता है।
1.निर्देशक ने काशीफूलों से भरे मैदान में अपू और दुर्गा के रेलगाड़ी देखने वाले सीन का आधा भाग चित्रित कर लिया था।
2.सात दिन बाद, उस जगह के सारे काशफूल जानवरों द्वारा खा लिए गए थे।
3.यदि राय उसी जगह बचे हुए आधे सीन की शूटिंग करते जहाँ काशफूल नहीं थे, तो पहले भाग और दूसरे भाग का आपस में मेल नहीं बैठता और दृश्य की निरंतरता (कंटिन्युइटी) गायब हो जाती।
प्रश्न 3: किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है?
उत्तर-
1. रेलगाड़ी का दृश्य: दर्शक यह नहीं पहचान पाते कि अपू और दुर्गा के रेलगाड़ी देखने वाले दृश्य में एक ही दिशा से आने वाली तीन अलग-अलग रेलगाड़ियों का इस्तेमाल शूटिंग के लिए किया गया था।
2. भूलों कुत्ते का दृश्य: दर्शक यह भी नहीं पहचान पाते कि अपू की माँ (सर्वजया) द्वारा भाँत (पके हुए चावल) फेंकने और कुत्ते द्वारा उसे खाने वाले सीन को पूरा करने के लिए भूलों की भूमिका में दो अलग-अलग कुत्तों से काम लिया गया था।
प्रश्न 4: 'भूलों' की जगह दूसरा कुत्ता क्यों लाया गया? उसने फ़िल्म के किस दृश्य को पूरा किया?
उत्तर-
1.भूलों कुत्ते से जुड़ा एक दृश्य (अपू द्वारा भात छोड़ने और सर्वजया द्वारा गमले में भात डालने का) पैसे और सूर्य की रोशनी के अभाव के कारण पूरा नहीं हो पाया था। छह महीने बाद, जब पैसे इकट्ठा हुए और शूटिंग के लिए लौटे, तो ख़बर मिली कि भूलों कुत्ता मर चुका है। इसलिए कंटिन्यूइटी बनाए रखने के लिए, भूलों जैसा दिखने वाला दूसरा कुत्ता लाया गया।
2.दूसरे कुत्ते ने उस दृश्य को पूरा किया, जहाँ सर्वजया थाली में बचा हुआ भात एक गमले में डाल देती है और वह कुत्ता उस भात को खाता है।
प्रश्न 5: फ़िल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुज़र जाने के बाद किस प्रकार फ़िल्माया गया?
उत्तर-
1.फ़िल्म में श्रीनिवास की भूमिका घूमते मिठाईवाले की थी। अपू और दुर्गा के पास मिठाई खरीदने के पैसे नहीं थे, इसलिए वे मुखर्जी के अमीर घर के पास जाकर श्रीनिवास का मिठाई बेचना देखते थे।
2.श्रीनिवास की भूमिका निभाने वाले सज्जन का देहांत हो जाने के बाद, राय को दूसरा सज्जन मिला, जिसका चेहरा तो नहीं मिलता था, लेकिन वह शरीर से पहले श्रीनिवास जैसा ही था।
3.शेष दृश्य को चित्रित करने के लिए यह तरकीब अपनाई गई: फ़िल्म में यह दिखाया गया कि पहला श्रीनिवास बाँसवन से बाहर आता है, और तुरंत बाद, दूसरा श्रीनिवास कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर जाता है, ताकि दर्शक पहचान न पाएँ।
प्रश्न 6: बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या मुश्किल आई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
1. मुश्किल: पैसे की कमी (आर्थिक अभाव) के कारण बरसात के दिन बीत गए और शूटिंग नहीं हो सकी। जब पैसे इकट्ठा हुए, तब अक्टूबर (शरद ऋतु) शुरू हो गया था और निरभ्र आकाश में बारिश की संभावना बहुत कम थी।
2. समाधान: राय शरद ऋतु में भी हर रोज़ देहात (गाँव) जाकर बारिश की आशा में बैठे रहते थे। सौभाग्य से, एक दिन आसमान में बादल छा गए और धुआँधार बारिश हुई। राय ने तुरंत प्लास्टिक से ढके कैमरे का उपयोग करके दृश्य चित्रित किया। शूटिंग के बाद ठंड से सिहर रहे अपू और दुर्गा को दूध में ब्रांडी मिलाकर दी गई, जिससे उनका शरीर गर्म हो गया।
प्रश्न 7: किसी फ़िल्म की शूटिंग करते समय फ़िल्मकार को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर-
1.आर्थिक अभाव के कारण शूटिंग का बार-बार स्थगित होना।
2.कलाकार (विशेषकर बाल कलाकार) को ढूंढने में अत्यधिक कठिनाई आना।
3.बाल कलाकार का ढाई साल के कालखंड में बड़ा हो जाना, जिससे निरंतरता (कंटिन्युइटी) टूटने का डर।
4.जानवरों और कलाकारों की अप्रत्याशित मृत्यु हो जाना, जिससे दृश्य अधूरे रह जाते हैं।
5.काशफूल जैसे प्राकृतिक तत्वों का गायब हो जाना, जिससे दृश्य में निरंतरता बनाए रखना असंभव हो जाता है।
6.ट्रेन या बारिश जैसे दृश्य चित्रित करने के लिए मौसम या उपयुक्त समय का अभाव।
7.स्थानीय लोगों (जैसे सुबोध दा या पागल धोबी) के कारण साउंड या रिकॉर्डिंग के काम में परेशानी आना।
8.शूटिंग के दौरान रिकॉर्डिंग रूम में साँप जैसे वन्यजीवों का निकलना।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1: तीन प्रसंगों में राय ने कुछ इस तरह की टिप्पणियाँ की हैं कि दर्शक पहचान नहीं पाते कि... या फ़िल्म देखते हुए इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया कि... इत्यादि। ये प्रसंग कौन से हैं, चर्चा करें और इस पर भी विचार करें कि शूटिंग के समय की असलियत फ़िल्म को देखते समय कैसे छिप जाती है।
उत्तर-
1. तीनों प्रसंग:
- रेलगाड़ी का दृश्य: जहाँ एक सीन में तीन अलग-अलग रेलगाड़ियों का इस्तेमाल किया गया।
- भूलों कुत्ता का दृश्य: जहाँ भाँत खाने वाले सीन में दो अलग-अलग कुत्तों से काम लिया गया।
- श्रीनिवास मिठाईवाले का दृश्य: जहाँ दो अलग-अलग कलाकारों ने एक ही भूमिका निभाई (एक बाँसवन से बाहर आता है, दूसरा पीठ दिखाकर गेट के अंदर जाता है)।
प्रश्न 3: पथेर पांचाली फ़िल्म में इन्दिरा ठाकुराइन की भूमिका निभाने वाली अस्सी साल की चुन्नीबाला देवी ढाई साल तक काम कर सकीं। यदि आधी फ़िल्म बनने के बाद चुन्नीबाला देवी की अचानक मृत्यु हो जाती तो सत्यजित राय क्या करते? चर्चा करें।
उत्तर-
सत्यजित राय ने यह स्वीकार किया है कि चुन्नीबाला देवी का ढाई साल तक काम कर पाना उनका सौभाग्य था। यदि उनकी मृत्यु हो जाती, तो राय के समक्ष श्रीनिवास मिठाईवाले के जैसी ही समस्या आ जाती।
1.वे इन्दिरा ठाकुराइन की भूमिका के लिए किसी ऐसी वृद्ध महिला की तलाश करते, जिसका शरीर और चेहरा चुन्नीबाला देवी से मिलता-जुलता हो।
2.चूंकि इन्दिरा ठाकुराइन एक प्रमुख पात्र थीं, इसलिए शायद उन्हें पटकथा में कुछ बदलाव करने पड़ते या बचे हुए दृश्यों को इस प्रकार फिल्माया जाता कि नई कलाकार का चेहरा स्पष्ट न दिखे (जैसे पीठ दिखाकर या केवल परछाई का उपयोग करके), जैसा उन्होंने श्रीनिवास के साथ किया।
प्रश्न 4: पठित पाठ के आधार पर यह कह पाना कहाँ तक उचित है कि फ़िल्म को सत्यजित राय एक कला-माध्यM के रूप में देखते हैं, व्यावसायिक-माध्यM के रूप में नहीं?
उत्तर-
पठित पाठ के आधार पर यह कहना पूर्णतः उचित है कि सत्यजित राय फ़िल्म को एक कला-माध्यम के रूप में देखते हैं।
1.उन्होंने फ़िल्म को ढाई साल के लंबे समय में पूरा किया। एक व्यावसायिक फ़िल्मकार इतना समय और धन बर्बाद नहीं करता।
2.उन्होंने पैसों की कमी के बावजूद अपनी कलात्मक दृष्टि से समझौता नहीं किया। वे काशफूलों के लिए एक साल और बारिश के लिए शरद ऋतु में भी इंतज़ार करते रहे।
3.उनकी प्राथमिकता फ़िल्म की कलात्मक उत्कृष्टता और दृश्यों की सच्चाई थी, न कि जल्दी से फ़िल्म बनाकर बाज़ार से पैसा कमाना।
भाषा की बात
प्रश्न 2: हर क्षेत्र में कार्य करने या व्यवहार करने की अपनी निजी या विशिष्ट प्रकार की शब्दावली होती है।... फ़िल्म से जुड़ी शब्दावली में से किन्हीं दस की सूची बनाइए।
उत्तर-
फ़िल्म से जुड़ी विशिष्ट शब्दावली:
1.शूटिंग
2.शॉट
3.सीन
4.पटकथा
5.निर्देशक
6.कलाकार
7.छायाकार
8.फ़ीचर फ़िल्म
9.कंटिन्यूइटी (निरंतरता)
10.साउंड-रिकॉर्डिंग
प्रश्न 3: नीचे दिए गए शब्दों के पर्याय इस पाठ में ढूँढ़िए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए— इश्तहार, खुशकिस्मती, सीन, वृष्टि, जमा।
उत्तर-
1. इश्तहार
- पर्याय: विज्ञापन
- वाक्य प्रयोग: अपू की भूमिका के लिए राय ने अख़बार में विज्ञापन दिया।
2. खुशकिस्मती
- पर्याय: सौभाग्य
- वाक्य प्रयोग: चुन्नीबाला देवी का ढाई साल तक काम कर पाना राय का सौभाग्य था।
3. सीन
- पर्याय: दृश्य
- वाक्य प्रयोग: बारिश के कारण अपू और दुर्गा के आश्रय लेने का दृश्य बहुत अच्छा चित्रित हुआ।
4. वृष्टि
- पर्याय: बरसात
- वाक्य प्रयोग: शरद ऋतु में हुई धुआँधार बरसात (वृष्टि) के कारण शूटिंग पूरी हो सकी।
5. जमा
- पर्याय: इकट्ठा
- वाक्य प्रयोग: पैसे इकट्ठा होने पर ही शूटिंग का रुका हुआ काम शुरू हो पाता था।
महत्वपूर्ण शब्दावली
- संस्मरण: स्मृति के आधार पर लिखा गया वृत्तांत या अनुभव।
- फ़ीचर फ़िल्म: एक पूरी लंबाई वाली कथा-फ़िल्म।
- कंटिन्युइटी (निरंतरता): फ़िल्म के दृश्यों में एकरूपता और तारतम्यता बनाए रखना।
- पटकथा: फ़िल्म की लिखित कहानी, जिसमें संवाद और दृश्यों का ब्यौरा होता है।
- शॉट: एक बार में कैमरे से लिया गया निरंतर फुटेज।
- सीन (दृश्य): एक ही स्थान पर घटित होने वाली घटना का हिस्सा।
- देहात: गाँव, ग्रामीण इलाका।
- विज्ञापन: प्रचार, इश्तहार।
- स्थगित: टाला हुआ, रोका हुआ।
- निरभ्र: बादल रहित, साफ़ आसमान।
- भाँत: पके हुए चावल।
समझने के लिए टिप्स:
- इस पाठ को एक फ़िल्म निर्देशक की डायरी की तरह पढ़ें।
- 'कंटिन्युइटी' (continuity) शब्द के महत्व को समझें, क्योंकि यह पाठ की मुख्य चुनौतियों में से एक है।
- ध्यान दें कि कैसे लेखक ने आर्थिक और तकनीकी बाधाओं को अपनी रचनात्मकता से पार किया।
- सोचें कि यह पाठ फ़िल्म निर्माण को एक 'कला' के रूप में कैसे स्थापित करता है, न कि सिर्फ एक 'व्यवसाय' के रूप में।
- पाठ में आए रोचक किस्सों (जैसे- कुत्ता, मिठाईवाला, बारिश) को याद रखें, ये परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।